Monday, November 14, 2011

जीवन अनवरत और अनंत हैं

कल रात अकुल जब तुमे ने मेरे ख्वाबो की दहलीज़ पर दस्तक दी, तो जीवन की वीरानी का एहसास हुआ | तय तो यह था की मैं और तुम साथ मैं रोशनी के दिए प्रज्वलित करेंगे, पर इंसान की तय करी हर इबारत हमेशा ही समय की कसौटी पर खरी उतरे, यह जरूरी नहीं, पर जरूरी यह है, तुम्हारा ये समझना की मन की ख़ुशी और खुश रहना किसी और पर निर्भर नहीं हो सकता. यह एक कला हैं. जानता हूँ बहुत आसान है शब्दों मैं बयाँ करना और उतना ही कठिन उसे चरितार्थ करना, परंतु जीवन अनवरत और अनंत हैं. तुम जब कर्णावती मैं होगे तब दोनों मिल कर उस तय इबारत को साथ लिखेंगे | तब तक तुम आपनी माँ, दादा, दादी और चाचू के साथ आनंद मैं रहो. जय हो शुभ हो | तुम्हारा, अपूर्व

Wednesday, November 9, 2011

 अंतर्द्वंद

लिखना चाहता हूँ, कहना चाहता हूँ, बहुत कुछ,
संवेदना के मानसपटल पर,
हाशिये पर पड़े इस जीवन को
रेखांकित करना चाहता हूँ,
इक धुरी पर घूमते इस चक्र
को जैसे की मैं थामना चाहता हूँ,
नामुमकिन को मुमकिन करना चाहता हूँ,
अलग थलग पड़े ये मेरे सोच के दायरों को,
जैसे की नयी दिशा देना चाहता हूँ,
मन की मृगतृष्णा के बंधन से मुक्त होना चाहता हूँ,
तलाशता हूँ उस संजीविनी को,
उस शिव प्रेरणा को,
जो इस मंथन के विष को ग्रहण करे,
विश्वामित्री अधूरी तपस्या को पूर्ण करे,
तभी भीतर के दरीचे से,
'अकुल', आवाज़ आती है,
और विचारो के इस
अंतर्द्वंद पर पूर्णविराम लगा जाती है,
और तभी अमृत वर्षा का एहसास होता है |

From a loving father to my son..Akul. Love u....